समर्थाचिया सेवका वक्र पाहे। असा सर्व भुमंडळी कोण आहे॥ जयाची लिला वर्णिती लोक तीन्ही। नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी॥
तुटे वाद संवाद तेथें करावा। विविके अहंभाव हा पालटावा॥ जनीं बोलण्यासारिखे आचरावें। क्रियापालटे भक्तिपंथेचि जावे॥
मना अल्प संकल्प तोही नसावा। सदा सत्यसंकल्प चित्तीं वसावा॥ जनीं जल्प वीकल्प तोही त्यजावा। रमाकांत एकान्तकाळी भजावा॥
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The Buddha’s Way of Happiness
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